जानें क्‍यों मदर टेरेसा ने कहा धन्य है यह देश जहां के लोग अपने नहीं बल्कि दूसरों के बारे में सोचते हैं

एक बार मदर टेरेसा को पता चला कि एक गरीब परिवार कई दिनों से भूखा है। वह उस परिवार के पास चावल लेकर पहुंचीं। उस परिवार में एक महिला और आठ बच्चे थे। मदर टेरेसा को देखकर घर की महिला खड़ी हुई और उनसे चावल लेकर बार-बार धन्यवाद देते हुए बोली, ‘मदर, आप जरा बैठें, मैं अभी आई।’ इसके बाद वह मदर टेरेसा के दिए चावल को लेकर घर से बाहर चली गई। मदर महिला का अजीब व्यवहार देखकर असमंजस में पड़ गईं और घर के कोने में रखी टूटी कुर्सी पर बैठ गईं।

कुछ देर बाद वह महिला लौटी तो चावल का पात्र खाली था। यह देखकर मदर बोलीं, ‘आप कहां गई थीं?’ महिला बोली, ‘पास की झोपड़ी में एक मुस्लिम परिवार के सदस्य कई दिनों से भूखे हैं। उस परिवार में भी छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन्हें इन चावलों की जरूरत मेरे परिवार से कहीं ज्यादा थी। इसलिए मैं आपके दिए गए चावल उन्हें दे आई हूं।’ मदर महिला के प्रति गर्व से देख ही रही थीं कि तभी महिला का पुत्र एक डिब्बा हाथ में लेकर आया और बोला, ‘मदर आपने हमें चावल दिए। यह मेरी तरफ से आपके लिए उपहार है।’

मदर डिब्बे की ओर हैरानी से देखते हुए बोलीं, ‘इसमें क्या है?’ बालक बोला, ‘मुझे चीनी बहुत पसंद है। इसलिए मेरी मां भोजन के समय थोड़ी चीनी खाने को देती थीं। मैं कई बार उस चीनी को बचा कर डिब्बे में इकट्ठा कर लेता था कि मन करने पर खाऊंगा। अब जब हमारी बस्ती में अनेक बच्चे भूखे हैं और आप भूखों को भोजन बांट रही हैं तो यह चीनी उन भूखे बच्चों को दे दीजिएगा।’ मदर टेरेसा गरीब मां व बालक के विशाल हृदय को देखकर अभिभूत हो गईं और बोली, ‘धन्य है यह देश जो स्वयं भूखे रहकर भी दूसरों की भूख मिटाने का प्रयास करते हैं।’

संकलन : रेनू सैनी