जानिए चामुंडाराय गंगवंशी का इतिहास और इस तरह की थी गोम्मटसार की रचना

संकलन: रमेश जैन
मैसूर के श्रवणबेलगोला में विश्व प्रसिद्ध भगवान बाहुबली की भव्य मूर्ति बनवाने वाले चामुंडाराय गंगवंशी राजा राचमल्ल के महामंत्री और प्रधान सेनापति थे। बचपन में उनका नाम गोम्मट था। वह गंगवंश के तीन राजाओं मारसिंह, राचमल्ल और उनके उत्तराधिकारी रक्कस गंग के महामंत्री रहे। यह काल कर्नाटक में जैन धर्म का स्वर्ण युग था। सेनापति के रूप में उन्होंने गंगराजाओं को 2-4 बार नहीं, बल्कि 18 बार भीषण युद्ध करके अभूतपूर्व विजय दिलाई।

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कई युद्ध जीतने पर उन्हें समय-समय पर वीर मार्तंड, रणरंग सिंह, वैरिकुलकालदंड, भुजविक्रम, समरकेसरी और सुभटचूड़ामणि की गरिमापूर्ण उपाधियां प्रदान कर सम्मानित भी किया गया। पर चामुंडाराय का मन जैन दर्शन में ही रमता। वह जैन दर्शन के प्रकांड पंडित तो थे ही, सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य नेमिचंद्र के प्रमुख शिष्य भी थे। एक बार आचार्य नेमिचंद्र प्राचीन जैन ग्रंथ षटखंडागम का अध्ययन कर रहे थे। तभी चामुंडाराय उनके पास पहुंचे। आचार्य ने यह सोचकर कि चामुंडाराय की समझ में कुछ नहीं आएगा, वह ग्रंथ बंद करके रख दिया।

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चामुंडाराय ने आचार्य से धर्मचर्चा शुरू की और उनके अनेक गूढ़ प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर दिए। आचार्य इससे बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने न केवल वह ग्रंथ चामुंडा को पढ़ाया, बल्कि साथ ही सरल भाषा में एक नए ग्रंथ की भी रचना कर डाली, जिसका नाम उन्होंने चामुंडा के बचपन के नाम पर गोम्मटसार रख दिया। यह ग्रंथ जैन धर्म की अमर रचना है, जो एक हजार साल बाद आज भी जैन मंदिरों में श्रद्धापूर्वक पढ़ी जाती है। इसके बाद चामुंडाराय ने भगवान बाहुबली की जो विशाल मूर्ति बनवाई, वह मूर्ति भी उनके नाम पर गोम्मटेश्वर यानी गोम्मट का ईश्वर कहलाई। एक हाथ में शस्त्र और दूसरे हाथ में शास्त्र लेकर कर्मभूमि में उतरने वाले उस महानायक ने न तो कभी शस्त्र झुकने दिया और न ही शास्त्र की मर्यादा कभी कम होने दी।