जानिए क्यों पादरी नहीं बनना चाहते थे गुरुत्वाकर्षण की खोज करने वाले आइजैक न्यूटन

संकलन: सुभारती पंवार
सन 1674 की बात है। तब तक सर आइजैक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण की खोज कर ली थी और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में फेलो थे। तब इंग्लैंड में बस दो यूनिवर्सिटी थीं- ऑक्सफर्ड और कैंब्रिज। दोनों में लोग पादरी बनने के लिए पढ़ने जाते थे। न्यूटन की पादरी बनने में कोई रुचि नहीं थी। बल्कि अक्सर लोगों से उनकी बहस ईश्वर के अस्तित्व पर भी हो जाया करती थी। कैंब्रिज में जो फेलो बनते थे, उनको अगले सात सालों में पादरी बनना ही होता था और यह साल वहां पर न्यूटन का सातवां साल था।

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न्यूटन का तकिया कलाम था- नलियस इन वेरबा, यानी महज किसी के शब्दों पर यकीन मत करो। न्यूटन ने बाइबल को भी उसी उग्र प्रश्नवाचक मन से पढ़ा, जैसे उन्होंने प्रकृति को समझा था। उन्होंने फैसला किया कि वह पवित्र ट्रिनिटी के बारे में इंग्लैंड के चर्च से सहमत नहीं थे। मगर कैंब्रिज में रहने के लिए न्यूटन को उस विचार को स्वीकार करने की शपथ लेनी थी। अगर वह चर्च की बातें ना मानते तो उन्हें अपमानजनक तरीके से कैंब्रिज छोड़ने के लिए मजबूर किया जाता। लेकिन उनका दिल इस झूठ बोलने को नहीं माना।

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इसी ऊहापोह में वह साल बीता। अगले साल, यानी 1675 में उन्होंने किंग चार्ल्स द्वितीय से संपर्क किया। न्यूटन ने सोचा कि राजा उनकी कुछ मदद कर सकते थे, क्योंकि वह इंग्लैंड के चर्च के हेड थे। न्यूटन राजा को समस्या का असली कारण भी नहीं बताना चाहते थे। बता देते तो राजा भी भड़क उठते। उन्होंने राजा को समझाया कि वह सिर्फ यूनिवर्सिटी के फेलो नहीं हैं, वहां गणित के प्रोफेसर भी हैं। इसका मतलब यह था कि उन्हें पादरी नहीं बनना चाहिए। तर्क तो बहुत अच्छा नहीं था, मगर किंग चार्ल्स ने फैसला दिया कि न्यूटन पादरी नहीं बनेंगे। और इस तरह से न्यूटन ने विज्ञान की एक बड़ी लड़ाई जीती।