ओशो के अनुसार दिवाली में चांदी के सिक्कों से लक्ष्मी पूजन करना कितना सही

मिट्टी का दीया बनाते हैं दीपावली में और उसमें ज्योति जलाते हैं। वह प्रतीक है इस बात का कि मिट्टी के दीये में अमृत ज्योति संभाली जा सकती है। मिट्टी के दीये में अमृत ज्योति जल सकती है। भारत में दिवाली मनाए जाने के दो कारण हैं। एक तो हिंदुओं का कारण है और एक जैनों का कारण है। हिंदुओं का कारण तो बहुत बहुमूल्य नहीं हैं लेकिन जैनों का कारण जरूर बहुमूल्य है। हिंदू तो मनाते हैं दीपावली, लक्ष्मी की पूजा का त्योहार, धन की पूजा का त्योहार। इससे ज्यादा भौतिकवाद और क्या होगा?

लोग चांदी के सिक्के रखकर इनकी पूजा करते हैं। और ये ही भले लोग दुनिया भर में घोषणा करते हैं कि भारत जैसा धर्मिक देश नहीं है। दुनिया के किसी भी कोने में धन की पूजा नहीं होती सिवाय भारत को छोड़कर। लक्ष्मी की पूजा नहीं होती। अमेरिकन जो डॉलर का दीवाना है वह भी डॉलर को रखकर पूजा नहीं करता। वह भी इस बात को मूढ़तापूर्ण समझेगा। लक्ष्मी की पूजा इस पुण्यभूमि में ही होती है, इस धर्म भूमि में ही होती है। इस देश का सबसे बड़ा त्योहार है दीपावली, और सबसे बड़ा त्योहार समर्पित है चांदी के सिक्कों के लिए! धन की पूजा और त्याग की बातें! जैनों का कारण ज्यादा सार्थक है।

इसलिए दिवाली को पर्वों का राजा कहना गलत नहीं होगा

जैन दीपावली इसलिए मनाते हैं कि उस रात अमावस की रात महावीर निर्वाण को उपलब्ध हुए। उस रात मिट्टे के दीये में, मृण्मय दीये में चिन्मय ज्योति जगी। इसलिए दीये जलाते हैं। उनकी बात तो सार्थक मालूम पड़ती है। मगर वह भी बात है, जैन भी करते तो हैं पूजा चांदी के ही सिक्कों की। जैन घरों में भी लक्ष्मी की ही पूजा होती है। औपचारिक रूप से दूसरे दिन निर्वाण लाडू चढ़ा देते हैं भगवान पर कि लो, तुम्हारा भी निपटारा कर देते हैं। रात को पूजा करते हैं चांदी के सिक्कों की, सुबह भगवान पर निर्वाण लाडू चढ़ा देते हैं तुम से भी छुटकार ले लिया। चलो तुम भी ले लो। मौलिक अर्थ में तो बात महत्त्वपूर्ण थी। इसलिए भी महत्त्वपूर्ण थी, कि बुद्ध को तो ज्ञान हुआ पूर्णिमा की रात। समझ में आता है कि पूर्णिमा की रात कोई पूर्णता को उपलब्ध हो जाए। पूरा चांद आकाश में हो और भीतर भी पूरा चांद आ जाए। महावीर का निर्वाण हुआ अमावस की रात। यह ज्यादा महत्वपूर्ण है, इसमें ज्यादा काव्य है और ज्यादा अर्थवत्ता।

अमावस की रत पूर्णिमा उगे भीतर तो जीवन का जो विरोधाभास है वह साफ हो जाता है। कितना ही अंधेरा हो, घबड़ाना मत, अमावस की रात भी निर्वाण घटा है। और कितनी ही गंदी कीचड़ हो, घबराना मत, कमल खिले हैं। और मिट्टी का दीया हो तो चिंता मत करना कि मिट्टी के दीए में क्या होगा? ज्योति जल सकती है। मिट्टी पृथ्वी का हिस्सा है, ज्योति आकाश का। इसलिए ज्योति हमेशा ऊपर की तरफ भागती रहती है। ज्योति हमेशा ऊर्ध्वगामी है।’’ इन पटाखों को सुनते हैं? कभी तुमने सोचा कि पूरी दुनिया में सभी संस्कृतियों में, हर समाज में उत्सव के लिए कुछ दिन क्यों रखे होते हैं? उत्सव के ये कुछ दिन एक सांत्वना है, एक क्षति पूर्ति है क्योंकि समाज ने तुम्हारे जीवन से उत्सव छीन लिया है, और उसकी क्षति पूर्ति किसी और चीज से न की जाए तो तुम्हारी जिंदगी संस्कृति के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकती है। हर संस्कृति तुम्हें उसके बदले में कुछ देती है ताकि तुम दुख और उदासी में पूरी तरह से डूब न जाओ।

ये सांत्वनाएं झूठी हैं। ये पटाखे और ये दीये जो बाहर जल रहे हैं तुम्हें हर्ष और उल्लास से नहीं भर सकते। वे बच्चों के लिए ठीक हैं; लेकिन तुम्हारे लिए वे एक परेशानी हैं। हां, तुम्हारे अंतर-जगत में अहर्निश दीये जल सकते हैं, गीत-संगीत बज सकते हैं, आनंद की फूलझडि़यां फूट सकती हैं। सदा ध्यान रखो, समाज जब महसूस करता है कि तुम्हारे भीतर का दमन एक खतरनाक तरीके से फट पड़ सकता है अगर उसकी क्षति पूर्ति न की जाए, तब तुम्हारे अंदर के दमन को बाहर निकालने का कोई न कोई रास्ता निकालता है। यह वास्तविक उत्सव नहीं है, और यह सच्चा नहीं हो सकता। सच्चा उत्सव तुम्हारे जीवन से निकले, तुम्हारे जीवन का अंतरंग हिस्सा हो। और सच्चा उत्सव कैलेण्डर के अनुसार नहीं हो सकता कि नवंबर की पहली तारीख पर तुम उत्सव मनाओगे।

आश्चर्य! पूरे साल भर तुम दुखी रहो और पहली नवंबर को तुम अचानक नाचते-गाते हुए अपने दुख से बाहर आ जाओ। या तो वह दुख झूठा था या पहली नवंबर झूठी है; दोनों एक साथ सच नहीं हो सकते। और एक बार यह तारीख निकल जाए तो तुम वापस अपने दुख भरे काले गड्ढे में गिर जाओगे – हर कोई अपनी पीड़ा में डूबा हुआ, हर कोई अपनी चिंता में घिरा हुआ। नहीं, जीवन एक अनवरत उत्सव होना चाहिए, पूरे वर्ष दीयों का समारोह। तभी तुम विकसित हो सकते हो, खिल सकते हो। छोटी-छोटी बातों को उत्सव में बदलो। उत्सव का अर्थ है: अनुग्रह। उत्सव का अर्थ है: धन्यवाद।

‘सपना यह संसार’ पुस्तक से/ओशो इंटर नैशनल फाउंडेशन