एक दिन वह देश के युवा हाकिमों के साथ बैठकर शराब पी रहे थे। तभी भीख मांगते हुए एक भिखारी वहां आया। नर्मदिल फ्रांसिस ने अपनी जेब में जो कुछ भी था, सब उठाकर भिखारी को दे दिया। उनके ऐसा करने पर साथियों ने उनके धर्मार्थ कार्य का खूब मजाक उड़ाया। उस दिन की घटना से फ्रांसिस के दिल में वैराग्य उत्पन्न हो गया। भिखारी की दृष्टि ने उन्हें सांसारिक जीवन की गरीबी और दुख के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
अब फ्रांसिस गरीबों को खुलकर धन बांटने लगे। उनके पिता बर्नाडोन ने सोचा कि फ्रांसिस उनका पैसा बर्बाद कर रहा है। उन्होंने उसे कड़ी फटकार लगाई। फटकार सुन फ्रांसिस बीमार पड़ गए और महीनों बिस्तर पर पड़े रहे। जब जान बची तो उन्होंने अपना जीवन पवित्रता और मानवता की सेवा के लिए अर्पित करने की ठान ली। वह फिर से अपनी संपत्ति दान करने लगे। जब यह बात उनके पिता को पता चली तो उनका पारा सातवें आसमान पर चला गया। वह फ्रांसिस से बोले, ‘मैंने कड़ी मेहनत से यह दौलत इकट्ठा की है। तुम इसे ऐसे बर्बाद नहीं कर सकते।’ इस पर फ्रांसिस ने कहा, ‘कमाना उतना ही होता है पिताजी कि हमें भूखा ना रहना पड़े और ना ही कोई हमारे घर से भूखा जाए। इसके बाद जो होता है, वह सिर्फ पाप का माल होता है- और कुछ नहीं।’ इसके बाद फ्रांसिस घर छोड़कर ध्यान और तपस्या करने चल दिए।
संकलन : एंटोनी जोसेफ