उनकी पत्नी ने कहा कि यह बेहद जोखिम भरा और कठिन काम है। दुर्गा मल्ल ने पत्नी को समझाया, जब तक किसी कठिन कार्य को आप खुद आगे बढ़कर नहीं करेंगे, तब तक अन्य लोग उस मार्ग पर नहीं आएंगे। 27 मार्च 1944 को वह नगालैंड के कोहिमा में सतर्कता के साथ जासूसी कर रहे थे और शत्रुओं पर निगरानी रख रहे थे। दुर्भाग्यवश उन्हें पकड़ लिया गया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया और अंग्रेजों ने दुर्गा मल्ल को फांसी की सजा सुनाई। जब यह बात उनकी पत्नी शारदा को पता चली तो उनका रो-रोकर बुरा हाल हो गया।
फांसी के तख्ते पर जाने से पहले वह पत्नी से मिले और उनसे कहा, ‘शारदा! चिंता मत करो। करोड़ों हिंदुस्तानी तुम्हारे साथ हैं। भारत जल्दी ही स्वतंत्र होगा। मुझे पूर्ण विश्वास है। यह केवल थोड़े समय की बात है। कुछ समय बाद तुम एक नए भारत में सांस लोगी। उस भारत में हर भारतीय अपनी मर्जी से सांस ले सकेगा। इसके लिए कुछ लोगों को बलिदान करना ही होगा। मैं उन्हीं भाग्यशाली लोगों में से एक हूं।’ शहादत की उनकी भावना ने उनकी पत्नी का दुख छूमंतर कर दिया।
संकलन : रेनू सैनी