आखिर क्‍यों इस लड़के ने गुरुनानकजी से कहा, ‘इन सांसों से बड़ा दगाबाज कोइ नहीं है’

बात उन दिनों की है जब गुरु नानकदेव अपनी यात्रा पर थे। इस दौरान वे लाहौर के एक गांव में रुके। वहां सत्संग के दौरान एक छोटा सा बालक गुरु नानकजी के पास प्रतिदिन आकर बैठ जाता। एक दिन नानकजी ने उससे पूछा, ‘बेटा, कार्तिक के महीने में सुबह इतनी जल्दी सत्संग में आ जाता है, क्यों?’ बालक बोला, ‘महाराज, क्या पता कब मौत आकर ले जाए?’ तब गुरु नानक जी ने उस लड़के से कहा, ‘इतनी छोटी-सी उम्र का लड़का, अभी तुझे मौत थोड़े मारेगी? अभी तो तेरे पढ़ने-लिखने और खेलने के दिन है। फिर इसके बाद तू जवान होगा, बूढ़ा होगा, फिर मौत आएगी।’

लड़का बोला, ‘महाराज, आज मेरी मां चूल्हा जला रही थी। उस चूल्हे में उन्होंने बड़ी-बड़ी लकड़ियों को आग में डाला। परंतु आग ने उन लकड़ियों को नहीं पकड़ा। तो फिर उन्होंने मुझसे छोटी-छोटी लकड़ियां मंगवाईं। मां ने छोटी-छोटी लकड़ियां जब चूल्हे में डालीं, तो उन्हें आग ने जल्दी से पकड़ लिया। इसी तरह हो सकता है मुझे भी छोटी उम्र में ही मृत्यु पकड़ ले, इसीलिए मैं अभी से सत्संग में आ जाता हूं। इन सांसों से बड़ा दगाबाज कोई नहीं है।’

तब गुरु नानक जी ने उस बालक को समझाते हुए कहा,‘ बच्चे, एक बात गांठ बांध ले। हमारा शरीर जब तक निरोगी है, तब तक मृत्यु हमसे दूर है। इसलिए जब तक शरीर स्वस्थ रहे, हमें पुण्य कर्म करते रहना चाहिए। क्योंकि जब शरीर मिट्टी का हो जाएगा, तब कोई भी कुछ कर ही नहीं पाएगा। भक्ति से हमें ऐसी ऊर्जा मिलती है जो तनाव के साथ-साथ हमारी थकान भी दूर करती है। सेवा, अर्पण, कीर्तन, सत्संग ही असली धर्म की बुनियादी धारणाएं है। इसलिए जल्दी से परमात्मा से प्रेम करके अपना जीवन सफल बना लो।’

संकलन : आर.डी.अग्रवाल ‘प्रेमी’