अपनी ईमानदारी को साबित करने के लिए बुखारी को गंवानी पड़ी अपनी दौलत

सऊदी अरब में अपनी ईमानदारी के लिए एक मशहूर विद्वान हुए-बुखारी। एक बार वह समुद्री जहाज से लंबी यात्रा पर निकले। उन्होंने सफर के खर्च के लिए एक हजार दीनार अपनी पोटली में बांध ली। यात्रा के दौरान दूसरे यात्रियों से उनकी पहचान बढ़ गई। एक यात्री से उनकी नजदीकियां कुछ ज्यादा बढ़ गईं। एक दिन बातों-बातों में बुखारी ने उसे दीनार की पोटली दिखा दी। उस यात्री को लालच आ गया। उसने उनकी पोटली हथियाने की साजिश रची। एक सुबह उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया, ‘हाय मैं मारा गया। मेरा एक हजार दीनार चोरी हो गया।’

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जहाज के कर्मचारियों ने कहा, ‘तुम घबराते क्यों हो। जिसने भी तुम्हारे दीनार चुराए होंगे, वह यहीं होगा। हम एक-एक की तलाशी लेते हैं। वह अवश्य ही पकड़ा जाएगा।’ यात्रियों की तलाशी शुरू हुई। जब बुखारी की बारी आई तो जहाज के कर्मचारियों और यात्रियों ने उनसे कहा, ‘अरे साहब, आपकी क्या तलाशी ली जाए। आप पर तो शक करना ही गुनाह है।’ यह सुनकर बुखारी बोले, ‘नहीं, जिसके चोरी हुए हैं उसके दिल में शक बना रहेगा। इसलिए मेरी भी तलाशी भी जाए।’ बुखारी की तलाशी ली गई। उनके पास से कुछ नहीं मिला।

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दो दिनों के बाद उसी यात्री ने उदास मन से बुखारी से पूछा, ‘आपके पास तो एक हजार दीनार थे, वे कहां गए?’ बुखारी ने मुस्करा कर कहा, ‘उन्हें मैंने समुद्र में फेंक दिया। तुम जानना चाहते हो क्यों? मैंने जीवन में दो ही दौलत कमाई है? एक ईमानदारी और दूसरा लोगों का विश्वास। अगर मेरे पास से दीनार बरामद होते और मैं कहता कि ये मेरे हैं तो लोग यकीन भी कर लेते, लेकिन फिर भी मेरी ईमानदारी और सचाई पर लोगों का शक बना ही रहता। मैं दौलत तो गंवा सकता हूं, पर ईमानदारी और सचाई को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहता।’

संकलन : सुरेंद्र अग्निहोत्री